Saturday, February 20, 2010

आत्म अनुभूति की अवस्था : अंतिम से आरम्भ की ओर

आत्म अनुभूति : त्तात्पर्य स्वमिलन से है टारगेट, नौकरी , बोनस इन्ही कुछ शब्दों के बीच में एक शब्द ऐसा भी मेरे मन के सागर में लहरों की भांति हिलोरे ले रहा था एहसास हुआ की जीवन की प्रत्येक अवस्था मात्र कुछ कुछ पाने की तलाश में व्यतीत होती जा रही है इन सब में अपने आपको तो खोजा ही नहीं , जो जीवन का लक्ष्य हुआ करता था आज वह शब्द भी उच्चारित नहीं किया जाता समय की कैसी विडंबना है आज मेरे जीवन में मेरे पास मेरे लिए ही समय नहीं बचा यहाँ "मैं " अर्थात "युवा वर्ग " जो अपने परिवार को तो क्या स्वयं को भी समय रूपी धन से लाभान्वित करने में असक्षम है यदि उद्देश्य घंटे के चलचित्र की हो तो विद्यालय से बंक करने में कोई हानि नज़र नहीं आती किन्तु अपने माता - पिता के साथ मिनट बिताना सबसे कठिन कार्य , ऐसी दशा में आज मैंने प्रशन उठाया है आत्म अनुभूति का , जो सालों के मनन चिंतन का परिणाम होती है



भौतिक होते इस समाज को आवश्यकता है सिद्धांतो की सेद्धान्तिक एवं मौलिक विचारो वाले मनुष्यों की जो सत्य , विश्वास और अनुशासन के स्तंभों को पुनःस्थापित कर सके मानवता के उदाहरण जो रामजी से लेकर महात्मा गांघी ने रचे थे एक बार फिर उन्हें नवीन शदकोश से शब्द लाकर लिखा जाए अगर कहा जाए की आज मानव जाति अपने विकास की आरंभिक सभी अवस्थाए पार कर चुकी है एवं अंतिम अवस्था की ओर आगर्सर है तो अतिश्योक्ति ना होगी , समय की मांग है की अब ओर आगे जाया जाए किन्तु अब जो यात्रा होगी वह आरम्भ से अंतिम की ओर नहीं किन्तु अंतिम से आरम्भ की ओर होगी ,,,,,,, एक यात्रा संसार से अपनी ओर ... एक यात्रा जिसमे कोई लाभ नहीं होगा नाही हानि ... मात्र आत्म संतुष्टि होगी जो आत्म अनुभूति की ओर अग्रसर करेगी

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