Monday, June 16, 2014

Musafir!!!

रुक ना जाना थक कर मुसाफिर ,
वक़्त की रफ़्तार रुकने से रुकेगी !

ना आयेगा ये दौर गुज़र गया अगर तो ,
और गया अगर तो खुशियाँ हमे मिलेगी !

जागती आँखों ने............. मेरी ,
तुमसे मिलने का देखा था एक सपना !
तुम आंखे बंद करना
खवाबों में मैं मिलूंगी .......!!



गर पाओ खुद को तन्हा ...
याद मेरी आये .....!
तो यादें याद करना यादों में मैं मिलूंगी

रुक ना जाना थक कर मुसाफिर ,
वक़्त की रफ़्तार रुकने से रुकेगी !


Saturday, February 20, 2010

आत्म अनुभूति की अवस्था : अंतिम से आरम्भ की ओर

आत्म अनुभूति : त्तात्पर्य स्वमिलन से है टारगेट, नौकरी , बोनस इन्ही कुछ शब्दों के बीच में एक शब्द ऐसा भी मेरे मन के सागर में लहरों की भांति हिलोरे ले रहा था एहसास हुआ की जीवन की प्रत्येक अवस्था मात्र कुछ कुछ पाने की तलाश में व्यतीत होती जा रही है इन सब में अपने आपको तो खोजा ही नहीं , जो जीवन का लक्ष्य हुआ करता था आज वह शब्द भी उच्चारित नहीं किया जाता समय की कैसी विडंबना है आज मेरे जीवन में मेरे पास मेरे लिए ही समय नहीं बचा यहाँ "मैं " अर्थात "युवा वर्ग " जो अपने परिवार को तो क्या स्वयं को भी समय रूपी धन से लाभान्वित करने में असक्षम है यदि उद्देश्य घंटे के चलचित्र की हो तो विद्यालय से बंक करने में कोई हानि नज़र नहीं आती किन्तु अपने माता - पिता के साथ मिनट बिताना सबसे कठिन कार्य , ऐसी दशा में आज मैंने प्रशन उठाया है आत्म अनुभूति का , जो सालों के मनन चिंतन का परिणाम होती है



भौतिक होते इस समाज को आवश्यकता है सिद्धांतो की सेद्धान्तिक एवं मौलिक विचारो वाले मनुष्यों की जो सत्य , विश्वास और अनुशासन के स्तंभों को पुनःस्थापित कर सके मानवता के उदाहरण जो रामजी से लेकर महात्मा गांघी ने रचे थे एक बार फिर उन्हें नवीन शदकोश से शब्द लाकर लिखा जाए अगर कहा जाए की आज मानव जाति अपने विकास की आरंभिक सभी अवस्थाए पार कर चुकी है एवं अंतिम अवस्था की ओर आगर्सर है तो अतिश्योक्ति ना होगी , समय की मांग है की अब ओर आगे जाया जाए किन्तु अब जो यात्रा होगी वह आरम्भ से अंतिम की ओर नहीं किन्तु अंतिम से आरम्भ की ओर होगी ,,,,,,, एक यात्रा संसार से अपनी ओर ... एक यात्रा जिसमे कोई लाभ नहीं होगा नाही हानि ... मात्र आत्म संतुष्टि होगी जो आत्म अनुभूति की ओर अग्रसर करेगी

Monday, February 15, 2010

Need to do something more then "something"

वर्तमान समय की अत्यधिक गंभीर समस्या विश्व का दिनोदिन बढता तापमान तथाकथित 'ग्लोबल वार्मिंग ' है , सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक इसके दुश्परिणामो की दिन प्रतिदिन चर्चा कर रहे , कुछ समय पूर्व हुआ या यह कहा जाये मानवता को बचाने का जो १ प्रयास असफल हुआ अपनी परिस्थिति के रूप में स्वयं व्यक्त करता है की विकसित राष्ट्र जो co2 नामक राक्षस के सर्वाधिक पालनहार है .. मानवता को समाप्त करने के प्रति कितने जुझारू है.. समय की कैसी विडम्ब्ना है की आज अपनी धरती माँ को बचाने क लिए अरर्बो की जनसँख्या में कोई १ सच्चा सुपुत्र नहीं है.. अरबो क प्राकर्तिक संसाधन और करोडो की कमाई कर चुके उद्योद्पति अपनी संपदा सागर की कुछ बुँदे छलकाकर कार्पोरेट सोसिअल रेस्पोंसिबिलिटी का दम भरते है किन्तु क्या १ भी सटीक प्रयास अभी तक किया गया ? मेरा यहाँ प्रश्न है हर उस व्यक्ति से जो आज इस पृथिवी पर जन्म ले चुका है की क्या किया है उसने इस धरती माँ को बचने क लिए.. ?अगर अभी भी प्रयत्न नहीं किए गए तो कुछ समय बाद कोई आवश्यकता नहीं रहेगी कुछ भी कदम उठाने की..........

Thursday, January 28, 2010

Dear Readers,
"Conscientia" the word stands for knowledge .. the knowledge for which everyone is looking here and there, using different means to gather knowledge - internet, newspapers, magazines,books,library . today no stone is unturned by an aware student who is in search of conscientia . but my question to the world is that how much and how far one is able to utilize and make proper understanding regarding once knowledge. knowledge is immense then how one can say that who has reached the ultimate zenith of being knowledgeable, the state where person knows everything or i must say that the journey goes to no end.. so lets begin the endless journey of not facts but values.. because knowledge that create facts is not conscientia but its that which create values , not books but essence , not money but power, not education but skills, not people but human beings.... not..