
भौतिक होते इस समाज को आवश्यकता है सिद्धांतो की सेद्धान्तिक एवं मौलिक विचारो वाले मनुष्यों की जो सत्य , विश्वास और अनुशासन के स्तंभों को पुनःस्थापित कर सके । मानवता के उदाहरण जो रामजी से लेकर महात्मा गांघी ने रचे थे एक बार फिर उन्हें नवीन शदकोश से शब्द लाकर लिखा जाए । अगर कहा जाए की आज मानव जाति अपने विकास की आरंभिक सभी अवस्थाए पार कर चुकी है एवं अंतिम अवस्था की ओर आगर्सर है तो अतिश्योक्ति ना होगी , समय की मांग है की अब ओर आगे जाया जाए किन्तु अब जो यात्रा होगी वह आरम्भ से अंतिम की ओर नहीं किन्तु अंतिम से आरम्भ की ओर होगी ,,,,,,, एक यात्रा संसार से अपनी ओर ... एक यात्रा जिसमे कोई लाभ नहीं होगा नाही हानि ... मात्र आत्म संतुष्टि होगी जो आत्म अनुभूति की ओर अग्रसर करेगी ।